विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस l
विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस
(कल विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पूरे विश्व मे मनाया गया)
posted by seva bharat times on 22/08/2019
जयपुर l कल विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पूरे विश्व मे मनाया गया।वरिष्ठ अर्थात बड़े या अंग्रेजी में कहे तो सीनियर केवल एक दिन को वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने से हमारे कर्तव्य पूरे नही होते है। हमें जीवन मे वरिष्ठ लोगो की अहमियत समझनी ही होगी आज जो वक़्त हमारे समाज मे ,हमारे परिवारों में गुजर रहा है उसके लिए हमें मानना ही होगा कि वरिष्ठ लोग हमारे परिवार के लिए और समाज के लिए कितना आवश्यक हैं।अगर हम पिछले 20 वर्षों के पारिवारिक और सामाजिक ग्राफ पर नजर डाले तो हम वास्तविक रूप से देख सकते है कि जब से हमने वरिष्ठ लोगो को परिवार और समाज में उपेक्षित किया है तब से हमारे समाज मे बलात्कार,तलाक, आपसी झगड़े,आत्महत्या जैसे अपराध निरंतर तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।20 -25 वर्ष पहले जब परिवारों में वरिष्ठ लोगो का साथ होता था तो परिवार एक सुरक्षित माहौल में रहता था।
जहाँ दादा दादी को पता होता था कि उनके घर के पुत्र पुत्री पौत्र पौत्री कब कहाँ गए है और कब घर आयंगे।उस जमाने मे मोबाइल आज की तरह सबके हाथों में नही होते थे परंतु दादा दादी का साया ,बुजुर्ग माता पिता का हाथ परिवार के सभी सदस्यों के सर पर बराबर होता था। एक घर मे दो बेटे या चार बेटे होने पर भी ये पता नही चलता था कि कोनसा बच्चा कोनसे पुत्र का है क्योंकि पूरा परिवार दादा दादी के नाम से जाना जाता था l पति पत्नि के झगड़े तब भी होते थे परन्तु तलाक़ के केसों का ग्राफ पारिवारिक न्यायालय में बहुत कम हुआ करता था क्यो की घर के बड़े ही न्यायाधीश बनकर उन झगड़ो को घर मे ही सुलझा दिया करते थे आत्महत्या जैसे अपराध करने की नौबत बहुत कम आती थी क्यो की आत्महत्या करने का विचार किसी मे भी अवसादग्रस्त होने पर अकेले रहने पर ही आता है।और वरिष्ठ लोगो के सानिध्य में कोई अकेला रह नही पाता था तो अवसाद जैसी स्थिति बहुत कम होती थी।
अब तो वैज्ञानिकों ने भी ये मान लिया है कि जो बालक दादा दादी के साथ रहकर बड़े होते हैं उनमें अवसाद की स्थिति बहुत कम पाई गई और किसी कारण से यदि सयुंक्त परिवार का कोई बालक अवसादग्रस्त हो भी जाये तो शीघ्र ही उसके अवसाद से बाहर निकलने की संभावना बहुत अधिक होती है।साथ ही विज्ञान के अनुसार संयुक्त परिवार में रहने वाले बालकों में किसी भी संकट से उबरने की क्षमता भी बहुत अधिक पाई जाती है। आज सुबह ही अखबार में पढ़ा कि मोबाइल से दूर रहने का कहने पर पुत्री ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पिता की ही हत्या कर दी।पुत्री की उम्र मात्र 15 वर्ष जिस उम्र में बच्चे प्रेम का वास्तविक अर्थ ही नही समझ सकते और वो हत्या जैसे जघन्य अपराध करने लगते वो भी अपने जन्मदाता का ये सब घटनाएं हमे ये सोचने पर मजबूर करती है क्या यही हमारी संस्कृति और संस्कार है ।जिस भारत को उसकी संस्कृति के लिए पूरा विश्व जानता है वहाँ ये सब आखिर क्यों ।क्योंकि हमने स्वतंत्रता की चाह में अपने रक्षकों से दूर होकर अपने जीवन को स्वयं नरक बनाने में जुटे हुए हैं
आज ये लेख लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य यही है कि अभी बहुत कुछ नही बिगड़ा है हम अभी भी सँभल सकते है आज विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पर अपने वरिष्ठ परिवार जनों का महत्व समझ कर उन्हें वापस अपने परिवारों में जोड़े बहुत रह लिए एकल परिवार में आओ अब लौट चले अपनी पुरानी परंपरा संयुक्त परिवार प्रथा में तभी ये दिवस मनाना सार्थक होगा।
आचार्या कीर्ति शर्मा जयपुर l
आचार्या कीर्ति शर्मा