रोज सिर्फ 15 मिनट करें वरूण मुद्रा, चमकने लगेगा चेहरा 


रोज सिर्फ 15 मिनट करें वरूण मुद्रा, चमकने लगेगा चेहरा 


हम सभी को वातावरण के प्रदूषण, धूल-मिट्टी इत्यादि का सामना करना ही पड़ता है



(फोटो : 1- वरुण मुद्रा )


 


posted by seva bharat times on 28 /08 /2019 


मुद्रा द्वारा मनुष्य का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार का विकास होता है। प्राणायाम और ध्यान (मेडिटेशन) के समय हाथों की उँगलियों और अंगूठे अलग-अलग प्रकार से जोड़ने पर ही अलग-अलग मुद्रा का निर्माण होता है।   इन्हीं में से एक मुद्रा वरुण मुद्रा या जल मुद्रा होती है। जो हमारे शरीर में जल तत्व को प्रभावित करती है।


,कुछ मुद्राएँ सीधे हमारे स्वास्थ्य से संबंधित होती हैं। शरीर के संतुलित विकास के लिए ये उतनी ही महत्वपूर्ण हैं इनके द्वारा मनुष्य का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार का विकास होता है। प्राणायाम और ध्यान के समय हाथों की उँगलियों और अंगूठे अलग-अलग प्रकार से जोड़ने पर अलग-अलग मुद्रा का निर्माण होता है। एक मुद्रा वरुण मुद्रा या जल मुद्रा होती है। जो हमारे शरीर में जल तत्व को प्रभावित करती है।


वरुण मुद्रा करने की विधि
वरुण मुद्रा दो प्रकार की होती है। सबसे छोटी उंगली (कनिष्का) को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाने पर वरुण मुद्रा बनती है। दरअसल हाथ की सबसे छोटी उंगली को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है और अंगूठे को अग्नि का। तो जल तत्व और अग्नि तत्व को एक साथ मिलाने से बदलाव होता है। बस आपको करना ये है कि, छोटी उंगली के सिरे को अंगूठे के सिरे से स्पर्श करते हुए धीरे से दबाएं। बाकी की तीन उंगुलियों को सीधा रखें।


यह शरीर के जल तत्व के संतुलित बनाए रखती है। आंत्रशोथ तथा स्नायु के दर्द और संकोचन से बचाव करती है। एक महीने तक रोजाना 20 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करने से ज्यादा पसीना आने और त्वचा रोग को दूर करने में सहायक होती है। यह साथ ही इसके नियमित अभ्यास से रक्त भी शुद्ध होता है और शरीर में रक्त परिसंचरण बेहतर होता है। शरीर को लचीला बनाने में भी वरुण मुद्रा उपयोग होती है। यह मुद्रा त्वचा को भी सुंदर बनाती है।


इस मुद्रा को सर्दी के मौसम में कुछ अधिक समय के लिए न करें। आप गर्मी या दूसरें मौसम में इस मुद्रा को 24 मिनट तक कर सकते हैं। वरुण मुद्रा को अधिक से अधिक 48 मिनट तक किया जा सकता है। जिन लोगों को सर्दी और जुकाम की शिकायद रहती है, उन्हे वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए 


 



(फोटो : 2 - वरुण मुद्रा )


 


वरुण मुद्रा के फ़ायदे
वरुण मुद्रा जल की कमी (डिहाइड्रेशन) से होने वाले सभी तरह के रोगों से बचाती है, साथ ही इसके कई और लाभ भी होते हैं। सालों से इस मुद्रा का अभ्यास किया जाता रहा है और लोग इससे लाभान्वित होते रहे हैं। 


इस मुद्रा को करने से खून साफ होता है और चमड़ी के सारे रोग दूर होते है।
मुंह सूखने और त्वचा पर झुर्रिया पड़ने में यह फायदेमंद है।
इस मुद्रा के लगातार अभ्यास से शरीर का रूखापन दूर होता है।
इसको करने से शरीर में चमक बढ़ती है।
इस योग मुद्रा से आपके शरीर में पानी की कमी दूर होगी और शरीर में नमी बढ़ेगी।
वरुण मुद्रा को रोजाना करने से जवानी लंबे समय तक बनी रहती है और बुढ़ापा भी जल्दी नही आता।
ये मुद्रा प्यास को शांत करती है इसलिए गर्मी के लिए भी फायदेमंद है।
मन शांत होता है।
क्रोध और चिड़चिडेपन में कमी आती है।


 सावधनियां  
जिन लोगों को कफ़, पित्त, सर्दी, जुकाम या स्नोफिलिया रहता है उन्हे वरुण मुद्रा का अभ्यास ज्यादा समय तक नहीं करना चाहिए। एक्यूप्रेशर चिकित्सा के मुताबिक बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली शरीर के बाएं हिस्से और दाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली शरीर के दाएं भाग को नियंत्रित करती है। दोनों के दबाव से शरीर का दायां और बायां भाग स्वस्थ और ताकतवर बनता है। इस मुद्रा में अंगूठें से छोटी उंगली की मालिश करने से शक्ति संतुलित होती है। बेहोशी टूट जाती है।


                                   


 


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