सरकारी जमीन पर कब्जे मुक्त कराने जा रही है सरकार

 


सरकारी जमीन पर कब्जे मुक्त ,कराने जा रही है सरकार l
          (सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे)


             


 


posted by seva bharath times on 20/08/2019


देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अवैध कब्जों में फंसी सैकड़ों हेक्टेयर सरकारी जमीन को मुक्त कराने की सरकार ने तैयारी कर ली है। सचिव एवं आयुक्त गढ़वाल दिलीप जावलकर को इसकी कमान सौंपी गई है। देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) को सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण के चिह्नीकरण के निर्देश दे दिए गए हैं। एक आकलन के मुताबिक देहरादून में वर्तमान में डेढ़ हजार हेक्टेयर से ज्यादा सरकारी भूमि पर 20 हजार से अधिक अवैध कब्जे हैं।


अलग उत्तराखंड राज्य के वजूद में आने के बाद से ही देहरादून में अवैध कब्जों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहा है। देहरादून के राज्य की अस्थायी राजधानी बनने के बाद शहर अनियोजित विकास की मार से त्रस्त है। साथ ही नगर निगम और एमडीडीए की भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुए हैं। ऐसी सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण के चलते यहां लैंड बैंक बनाने की राह में दिक्कतें पेश आ रही हैं। उस पर आलम यह है कि बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण का सिलसिला जारी है। कहीं भूमि उपयोग में बदलाव किए बगैर निर्माण हो रहे हैं तो कहीं बगैर नक्शों के बेतरतीब ढंग से आवासीय ढांचे अस्तित्व में आ रहे हैं। इससे तमाम दिक्कतें पेश आ रही हैं। रही-सही कसर पूरी कर दी है नदी-नालों के किनारों पर उग आई अवैध बस्तियों के साथ ही अवैध कब्जों ने। नतीजतन, शहर की खूबसूरती पर दाग लग रहा है।



लगभग 12 वर्ष पहले वर्ष 2007-08 में किए गए सर्वे के मुताबिक देहरादून में अवैध कब्जों का आंकड़ा 11 हजार से ज्यादा था। नवीनतम आकलन के मुताबिक अब यह आंकड़ा 20 हजार से ज्यादा हो चुका है और लगभग 1500 हेक्टेयर भूमि इसकी भेंट चढ़ गई है। ये कब्जे नगर निगम की भूमि से लेकर सिंचाई विभाग के अंतर्गत नदी-नालों और प्रशासन की भूमि पर किए गए हैं। राज्य गठन के समय नगर निगम के पास लगभग 780 हेक्टेयर जमीन थी, जो 250 हेक्टेयर से भी कम रह गई है। 


यानी, पिछले अठारह सालों में नगर निगम की ही पांच सौ हेक्टेयर से अधिक भूमि अवैध कब्जों की जद में आई है। यह आंकड़ा तो नगर निगम क्षेत्र के विस्तार से पहले का है और वर्तमान में इसमें और इजाफा तय है क्योंकि अब 12900 हेक्टेयर ग्रामीण क्षेत्र भी नगर निगम का हिस्सा बन चुका है।



दरअसल, सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों का सबसे बड़ा कारण अब तक प्रदेश में रही सभी सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी को कहा जा सकता है। नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड अलग राज्य बना और देहरादून अस्थायी राजधानी, उसके बाद आवासीय भवनों से लेकर व्यापारिक प्रतिष्ठान और वाहनों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। राजनैतिक संरक्षण का आलम यह कि सड़कें भी अवैध कब्जों की शिकार हो गईं। जब भी अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कोई कदम उठाया गया, उसकी वजह सरकार की इच्छाशक्ति नहीं, बल्कि कोर्ट के आदेश ही रहे।



अब जबकि हाईकोर्ट देहरादून में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों को लेकर सख्त रुख प्रदर्शित कर चुका है, सरकार के लिए इसका अनुपालन करना बाध्यकारी हो गया है। इसी कड़ी में सचिव एवं आयुक्त गढ़वाल दिलीप जावलकर को देहरादून में सरकारी भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त कराने का जिम्मा सौंपा गया है।


 


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