वायु मुद्रा शरीर के अंदर व्याप्त गैस,कब्ज अपच को दूर करता है
हस्तमुद्रा क्रमश :
वायु मुद्रा
ये मुद्रा शरीर के अंदर व्याप्त गैस,कब्ज , अपच को दूर करने की असीमताकत रखतीहै l
रात्रि भोजन के 2 घंटे के पश्च्यात बाद आसन बिछा कर हो सके तो पद्मासन में अथवा सुखासन में बैठें। पाँच-दस गहरे साँस लें और धीरे-धीरे छोड़ें। उसके बाद शांतचित्त होकर मुद्राओं को दोनों हाथों से करें। विशेष परिस्थिति में इन्हें कभी भी कर सकते हैं।
वायु मुद्राः तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को मोड़कर ऊपर से उसके प्रथम पोर पर अँगूठे की गद्दी स्पर्श करने से वायु मुद्रा बनती हे शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।
लाभः हाथ-पैर के जोड़ों में दर्द, लकवा, पक्षाघात, हिस्टीरिया ,कब्ज ,गैस खट्टी डकारे आना आदि रोगों में लाभ होता है। इस मुद्रा के बाद प्राण मुद्रा करने से शीघ्र लाभ मिलता है।
यह मुद्रा जल की कमी से होने वाले सभी तरह के रोगों से बचाती है। इस मुद्रा का आप कभी भी और कहीं भी अभ्यास कर सकते हैं।
विधि : छोटी या चीठी अँगुली के सिरे को अँगूठे के सिरे से स्पर्श करते हुए दबाएँ। बाकी की तीन अँगुलियों को सीधा करके रखें। इसे वरुण मुद्रा कहते हैं।
लाभ : यह शरीर के जल तत्व के संतुलन को बनाए रखती है। आँत्रशोथ तथा स्नायु के दर्द और संकोचन को रोकती है। तीस दिनों के लिए पाँच से तीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करने से यह मुद्रा अत्यधिक पसीना आने और त्वचा रोग के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है। यह खून शुद्ध कर उसके सुचारु संचालन में लाभदायक है। शरीर को लचीला बनाने हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।
यह वायु के असंतुलन से होने वाले सभी रोगों से बचाती है। दो माह तक लगातार इसका अभ्यास करने से वायु विकार दूर हो जाता है। सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है।
विधि : इंडेक्स अर्थात तर्जनी को हथेली की ओर मोड़ते हुए उसके प्रथम पोरे को अँगूठे से दबाएँ। बाकी बची तीनों अँगुलियों को ऊपर तान दें। इसे वायु मुद्रा कहते हैं।
लाभ: प्रतिदिन 5 से 15 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास 15 दिनों तक करने से जोड़ों, पक्षाघात, एसिडिटी, दर्द, दस्त, कब्ज, अम्लता, अल्सर और उदर विकार आदि में राहत मिल सकती हैं।
श्री रमन भट्नागर