भारत की पहली ग्रेजुएट महिला, जरूर पढ़े
भारत की प्रथम ग्रेजुएट महिला
कामिनी रॉय ने तत्कालीन बंगाल में महिलाओं को
वोट का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लंबा कैंपेन चलाया।
आखिर में 1926 के आम चुनाव में महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया गया था।
1933 में उनका देहांत हुआ था।
गूगल ने बंगाली कवयित्री एक्टिविस्ट और शिक्षाविद् कामिनी रॉय का डूडल बनाया है। कामिनी रॉय की 155 वीं जयंती पर डूडल बनाया है कामिनी रॉय भारत की पहली महिला थी जिन्होंने महिला अधिकारों को लेकर खुलकर बात की। साथ ही यह पहली महिला थी जिसने ब्रिटिश इंडिया में ग्रैजुएशन ऑनर्स किया था। अमीर परिवार में जन्मीं रॉय के भाई कोलकाता के मेयर थे और उनकी बहन नेपाल के शाही परिवार की नामचीन फिजिशियन थीं।
कामिनी ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी पढ़ाई को लेकर कई कविताएं भी लिखी। सामाजिक कल्याण में भी उन्होंने काफी सहयोग दिया। कामिनी रॉय बहुमुखी प्रतिभा की महिला थी। उन्हें बचपन से ही गणित में काफी रुचि थी, लेकिन आगे की बढ़ाई उन्होंने संस्कृत में की। कोलकाता स्थित बेथुन कॉलेज से बीए ऑनर्स किया और फिर वहीं टीचिंग करने लगी थीं।
राष्ट्रवादी आंदोलनों का बनीं हिस्सा, महिलाओं के लिए रहीं समर्पित
कॉलेज में ही उनकी एक और स्टूडेंट अबला बोस से मुलाकात हुई थी। अबला महिला शिक्षा और विधवाओं के लिए काम करने में रुचि लेती थीं। उनसे प्रभावित होकर कॉमिनी रॉय ने भी अपनी जिंदगी को महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्पित करने का फैसला किया। कामिनी रॉय ने इल्बर्ट बिल का भी समर्थन किया था। वायसराय लॉर्ड रिपन के कार्यकाल के दौरान 1883 में इल्बर्ट बिल लाया गया था, जिसके तहत भारतीय न्यायाधीशों को ऐसे मामलों की सुनवाई का भी अधिकार दिया गया, जिनमें यूरोपीय नागरिक शामिल होते थे। इसका यूरोपीय समुदाय ने विरोध किया, लेकिन भारतीय इसके समर्थन में आंदोलन करने लगे।
महिलाओं को वोट के अधिकार के लिए चलाया कैंपेन
1909 में पति केदारनाथ रॉय के देहांत के बाद वह बंग महिला समिति से जुड़ीं और महिलाओं के मुद्दों के लिए पूरी तरह से समर्पित हो गईं। कामिनी रॉय ने अपनी कविताओं के जरिए महिलाओं में जागरूकता पैदा करने का काम किया था। यही नहीं तत्कालीन बंगाल में महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लंबा कैंपेन चलाया। आखिर में 1926 के आम चुनाव में महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया गया था। 1933 में उनका देहांत हुआ था।