शाही शादी 14 अक्टूबर को हरिद्वार में

रीवा की राजकुमारी मोहिना और हंस वंश के सुयश जी महाराज का परिणयोत्सव14 अक्टूबर को हरिद्वार में


निशीथ सकलानी


त्तराखण्ड के हंस परिवार और रीवा (मध्यप्रदेश) के राजघराने बघेल परिवार के बीच हुई बहुप्रतिक्षित रिश्तेदारी पर 14 अक्टूबर को विधिवत मोहर लग जायेगी। मध्यप्रदेश स्थित रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह जूदेव की बेटी और टीवी सीरियल 'ये रिश्ता क्या कहलाता है की मशहूर एक्ट्रेस राजकुमारी मोहिना सिंह और उत्तराखण्ड के पर्यटन, संस्कृति मंत्री व प्रमुख अध्यात्मिक गुरू हंस परिवार के श्री सतपाल जी महाराज के सुपुत्र सुयश महाराज अब शीघ्र ही शाही अंदाज में 14 अक्टूबर को हरिद्वार में आयोजित एक भव्य विवाह समारोह में लाखों लोगों की उपस्थिति में परिणय सूत्र में बंध जायेंगे।


सुयश महाराज और राजकुमारी मोहिना सिंह के पाणिग्रहण संस्कार के मौके पर जिन दो प्रमुख परिवारों का 14 अक्टूबर को हरिद्वार स्थित बैरागी कैम्प में ऐतिहासिक मिलन होगा वह परिवार किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। 'बघेल वशं और हंस वशं दोनों ही परिवारों का समाज में एक विशिष्ट स्थान है। मध्यप्रदेश के रीवा रियासत के बघेल वंश की यदि हम बात करें तो उसका इतिहास काफी पुराना हैबताया जाता है कि गुजरात से आये महाराजा व्याग्रदेव ने बाघेल खण्ड(रीवा रिसयासत) को बसाया था। रीवा के बारे में एक बात अक्सर कही जाती है कि जब पूरे भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी तब रीवा रियासत स्वतंत्र थी। रीवा रियासत में महाराजा श्री व्याग्रदेव से लेकर वर्तमान महाराजा श्री पुष्पराज सिंह तक 35 पीढियों का शासन रहा है।



यहां एक परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा के अनुसार यहां राजाओं की जगह गद्दी पर भगवान राम विराजमान होते हैं। इतना ही नहीं आज विश्व के बड़े-बड़े चिड़ियाघरों में जो सफेद शेर देखे जाते हैं वह रीवा रियासत की ही देन कही जाती है। अकबर के नवरत्नो में शामिल प्रसिद्ध बुद्धिमान बीरबल और संगीतकार तानसेन भी रीवा रियासत के ही बताये जाते हैं। रीवा रियासत के महाराजा श्री रघुराज प्रताप सिंह को एक चमत्कारिक और महान प्रतापी राजा कहा जाता है। रीवा रियासत के महाराजा श्री गुलाब सिंह एक जननायक होने के साथ-साथ मौलिक अधिकारों के भी पक्षधर रहे हैं।


उन्होने हिन्दी को अपनी रियासत की राजभाषा बनाने के अलावा रियासत में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार देते हुए एक ऐसा कानून बनाया जिससे कोई भी व्यक्ति राज आदेश (राजाज्ञा) को भी चुनौती दे सकता था। उन्हे अजान बाहू (घूटने से नीचे तक लंबे हाथ वाले) भी कहा जाता है। श्री गुलाब सिंह के पुत्र महाराजा श्री मार्तण्ड सिंह भी अपने पिता की तरह ही प्रतिभाशाली थे। वह एक बहुत बड़े पर्यावरणविद थे। बताया जाता है कि उन्होने ही दुनियां में सबसे पहले सफेद शेर की खोज की थी। जिसके लिए इन्हे पदम भूषण से भी जवाजा गया था। मार्तण्ड जी की लोकप्रियता का पता इसी बात से चलता है कि वह तीन बार रीवा से सांसद रहे। उनके पास मोहन नाम का एक सफेद शेर था। दुनियां में आज जहां कही भी सफेद शेर दिखाई देते हैं वह महाराजा श्री मार्तण्ड सिंह की ही देन है। वह कर्ण के समान ही बहुत बड़े दानवीर भी थे। इन्हे आधुनिक कर्ण की संज्ञा भी दी जाती है। महाराजा श्री मार्तण्ड सिंह के पुत्र और राजकुमारी मोहिना के पिता महाराज श्री पुष्पराज सिंह जूदेव कला के परखी होने के साथ-साथ कत्थक विशेषज्ञ भी हैं। उन्हे व्यंजनों में भी विशेषज्ञता हासिल है। महाराजा श्री पुष्पराज सिंह राज्य सरकार में मंत्री और वाईडलॉइफ बोर्ड के सदस्य भी रहे हैं



जहां तक उत्तराखण्ड के हंस परिवार की बात है तो यह एक मात्र ऐसा परिवार है जो पूरे विश्व में वर्षों से मानव धर्म की पताका पहरा रहा है। उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद स्थित गाढ़ की सेडिया, चौबट्टाखाल के रहने वाले श्री रणजीत सिंह रावत जी के पुत्र श्री हंस जी महाराज एक राष्ट्र संत थे। विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री हंस जी महाराज ने अणुबम के विनाशकारी दुष्प्रभावों के लिए जनजागरण किया। इन्होने सर्वधर्म मंच की स्थापना कर पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। श्री हंस जी महाराज ने समाज में सदभावना और मानव धर्म का संदेश देते हुए सत्य के जागरण के लिए कई सर्वधर्म मंच लगाये। वह समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ हमेशा संघर्षरत रहे। आजादी के आन्दोलन में भी श्री हंस जी महाराज ने सक्रिय भागेदारी निभाई।


श्री हंस जी महाराज के पुत्र श्री सतपाल जी महाराज भी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह भी अपने पिता के समान ही विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। सुयश जी के पिता और वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार में पर्यटन, संस्कृति, सिंचाई सहित अनेक महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री श्री सतपाल महाराज अध्यात्म और राजनीति के बेमिशाल संगम हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में भी श्री महाराज हमेशा अग्रणी हैं। श्री सतपाल महाराज ने पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के लिए बद्रीनाथ से लेकर दिल्ली तक जनजागरण पदयात्रा की। श्री महाराज जब सांसद बने तो इन्होने उत्तराखण्ड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। एक सांसद और केन्द्रीय मंत्री के रूप में श्री सतपाल महाराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री एच.डी. देवगौड़ा और आई. के गुजराल दोनों से लाल किले की प्राचीर से उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा करवाई। श्री महाराज जी के प्रयासों के परिणामस्वरूप ही बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पर्वतीय प्रदेश की महत्ता को समझते हुए उत्तराखण्ड राज्य का निमार्ण किया। उत्तराखण्ड की वैकल्पिक राजधानी गैरसैण श्री महाराज जी की सोच का परिणाम रही है। इन्होने ही इसके निमार्ण के लिए सरकार से वित्तीय व्यवस्था भी करवाई।



उत्तराखण्ड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और यहां के विकास को ध्यान में रखते हुए श्री सतपाल महाराज ने केन्द्र में रेल राज्य मंत्री बनते ही सर्वप्रथम ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का सर्वे करवाया था। इनके निरन्तर प्रयासों का ही परिणाम है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस रेल ट्रेक की महत्ता को समझते हुए इसकी स्वीकृित प्रदान की। श्री महाराज जी के निरंतर संघर्ष के कारण ही आज यह 125 किलोमीटर लंबा रेलवे ट्रेक जिसमें 12 स्टेशन, 18 सुरंग और 16 पुल होंगे पर बड़ी तेजी के साथ निर्माण कार्य चल रहा है।


उत्तराखण्ड विधानसभा की तीन बार सदस्य रह चुकी श्रीमती अमृता रावत श्री सतपाल महाराज की अद्धांगिनी हैं। अमृता जी उत्तराखण्ड सरकार में अपने पहले कार्यकाल के दौरान उर्जा, बाल विकास एवं महिला सशक्तिकरण जैसे विभागों की राज्य मंत्री रही हैं। वहीं वह रामनगर से निर्वाचित होकर राज्य सरकार में पर्यटन, उद्यान, वैकल्पिक उर्जा, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की कैबिनेट मंत्री भी रही हैं। अमृता जी को उत्तराखण्ड की उत्कृष्ट विधायक के सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। आज पूरा पहाड़ जिस प्रकार से प्रकाशमान दिखाई दे रहा है उसके लिए श्रीमती अमृता रावत की मेहनत को ही इसका श्रेय जाता हैउर्जा राज्य मंत्री रहते हुए उन्होने ही गांव-गांव तक विद्युतिकरण करवाकर पूरे उत्तराखण्ड को आलौकिक किया।


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