कौन कहता है आसमाँ मेँ छेद हो नहीं सकता

कौन कहता है आसमाँ मेँ छेद हो नहीं सकता
बस एक पत्थर तबियत से उछालने का हौसंला चाहिए ।



हर व्यक्ति की अपनी क्षमताएं होती हैं, चाहे वह दिव्यांग हो। लोगो को दया भाव ना रखते हुए, उसे समझना चाहिए और उसे आगे बढ़ने देना चाहिए, न कि रोकना चाहिए)
जयपुर गुलाबी नगरी में रहने वाले तरुण कुमार जो एक पैरा एथलेटिक्स प्लयेर है। उनके जीवन का संघर्ष अपनी इसी मकसद के लिए है की एक दिन वह अपने प्रयासों से लोगो की सोच दिव्यांग जनों के प्रति बदल सके।और उन्हें भी सम्मान पूर्वक अपने कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ने को प्रेरित करें. तरुण 20 नवंबर 2006 को 16 साल की उम्र में हुए एक हादसे के कारण रीढ़ की हड्डी में गर्दन पर लगी चोट के कारण उसे स्पाइनल कार्ड इंजुरी हो गई। इसके कारण शरीर का आधा हिस्सा और दोनों हाथ की उंगलियां ने काम करना बंद कर दिया। हादसे के समय इस बात का एहसास नहीं था कि उनके साथ क्या हुआ, पर धीरे धीरे एहसास हुआ कि उन्हें अपने आगे का जीवन व्हीलचेयर पे ही गुजारना होगा। इस बात को स्वीकार करने में बहुत समय लगा. परन्तु उसके बाद हालातो से समझौता ना कर मजबूती से आगे बढ़ने की सोची, अपनी स्कूली शिक्षा फिर से शुरू की स्वयं से घर पे पढ़ाई कर हाई स्कूल को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। एक्सिडेंट से पहले विज्ञान विषय होने के कारण आगे प्रेक्टिकल में परेशानी के चलते उन्हें सब्जेक्ट बदलना पड़ा। फिर कॉमर्स से खुद से अध्ययन कर हाई स्कूल और फिर ग्रेजुएशन कंप्लीट की।



ग्रेजुएशन के बाद कोई जॉब करने की सोची जिससे अपने आपको को आत्मनिर्भर बना सकू। फिर कई परेशानियों के बाद अपना खुद का ऑनलाइन ट्रैवल टिकट बुकिंग का काम आरम्भ किया। इसी बीच एक सोशल मीडिया मार्केटिंग का कार्य मिला, जिसे भी शुरू किया। 


स्पोर्ट्स में चलती रुचि के जयपुर में हुई मैराथन में 6 किलोमीटर की दूरी व्हीलचेयर से पूर्ण की। इसके बाद मार्च 2019 में राजस्थान स्टेट लेवल पैरऻ एथलेटिक गेम में जो पैरा एसोसिएशन की ओर से आयोजित हुए, क्लब थ्रो में प्रतिभाग कर गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद इस वर्ष की शुरुवात में दिनांक 5 जनवरी 2020 को 37 घंटे का लगातार सफ़र कर चेन्नई में आयोजित इंडिया की दूसरी सबसे बड़ी मैराथन में भाग लेते हुए 10 किलोमीटर की दूरी को 1 घंटे 59 मिनट्स में व्हीलचेयर द्वारा पूरी कर मेडल प्राप्त किया। इसके बाद फरवरी 2020 में जयपुर मैराथन में हिस्सा लेते हुए 5 किलोमीटर की दूरी 47 मिनट्स में तय की। 16 वर्ष की उम्र में एक एक्सिडेंट के बाद जीवन में हुए बदलाव के बावजूद अपने जीवन को रुकने नहीं दिया। आगे चल लक्ष्य राष्ट्रीय और फिर अन्तर्राष्ट्रीय पेरा गेम में भाग लेते हुए देश के लिए मेडल प्राप्त करना। और आगे दिव्यांग जनो के लिए कार्य करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए मार्गदर्शन करना।
मेरे प्रयास किसी के लिए प्रेरणा स्रोत बन पाए यह सोच के साथ मेरी कोशिशॆ निरंतर आगे जारी रहेगी।
रमन भटनागर


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